जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों का गठन (संक्षिप्त परिचय)
भारत सरकार के आदेशानुसार वर्ष 1917 मे उत्तर प्रदेश के सचिवालय में एक ‘वार बोर्ड’ की स्थापना की गई । वर्ष 1919 में इस वार बोर्ड को ‘प्रान्तीय सोल्जर्स बोर्ड’ में परिवर्तित कर दिया गया । अपै्रल, 1942 में यह कार्यालय दूसरे विश्व महायुद्ध के दौरान सचिवालय से राजभवन में कर दिया गया और 31 मार्च, 1949 तक यही स्थिति रही अपै्रल, 1949 से प्रान्तीय सोल्जर्स बोर्ड का बजट सचिवालय सें अलग कर दिया गया और अगस्त, 1949 में इस परिषद के लिये पूर्णकालिक सचिव की नियुक्ति भी कर दी गई । यह स्थिति 1971 तक बनी रही ।
वर्ष 1971 मे संस्था के सुदृढ़ीकरण और पुनर्जीवन प्रदान करने के लिये इस संस्था को सैनिक कल्याण निदेशालय में परिवर्तित कर दिया । केन्द्रीय सैनिक बोर्ड, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली की संस्तुतियों के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिनांक 08 जुलाई, 1982 में निदेशालय, सैनिक कल्याण, उत्तर प्रदेश, का नाम परिवर्तित कर निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास, उत्तर प्रदेश कर दिया तथा जिला सैनिक, नाविक एवं वैमानिक परिषद का नाम परिवर्तित कर कार्यालय जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कर दिया गया ।
उद्देश्य
इस विभाग का मुख्य उद्देश्य पूर्व सैनिकों/विधवाओं व उनके आश्रितों के कल्याण एवं पुनर्वास योजनाओं का क्रियान्वयन कराना है साथ ही सेवारत सैनिकों के परिवारों से सम्बंधित समस्याओं का निराकरण भी कराना है । इसके लिए राज्य स्तर पर निदेशालय सैनिक कल्याण के अन्तर्गत प्रदेश में 71 जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय कार्यरत हैं निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास, उ0प्र0 कार्यालय पूर्व सैनिकों एवं आश्रितों के कल्याण एवं पुनर्वास हेतु केन्द्रीय सैनिक बोर्ड, नई दिल्ली के दिशा निर्देश से राज्य सरकार के आदेशों पर कार्य करता है । सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालयों के अधिष्ठान मद के वित्तीय भार का 60 प्रतिशत भारत सरकार तथा 40 प्रतिशत भार राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है ।